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भारत का एक ऐसा पहलवान जो कभी भी कुश्ती में नही हारा उसका नाम था गामा पहलवान |

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गामा पहलवान का जन्म और उसके शुरुआती जीवन के पहलू पहलवान गामा के जन्म व समय के साथ जन्म  स्थान को लेकर कई मतभेद है | और ऐसा इसलिए की कुछ लोगों का मानना है कि पहलवान गामा का जन्म 15 अक्टूबर, 1880 में कश्मीरी बट परिवार में मुहम्मद अज़ीज़ के घर में हुआ, जो अमृतसर (पंजाब) के रहने वाले थे | वहीं इसके विपरीत दुसरे लोगों का मानना है कि पहलवान गामा का जन्म 1889 में भोपाल, मध्यप्रदेश के दतिया में ग्राम होलीपुरा में हुआ था| गामा को पहलवानी विरासत में मिली थी क्योकि गामा का परिवार कुश्ती से जुड़ा हुआ था, इसलिए गामा के पिता भी पहलवान थे |जब गामा दस साल के थे तब जोधपुर (राजस्थान) में हुई एक बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में अपने प्रदर्शन से गामा वहा के जोधपुर महाराज से इनाम पाया और दतिया के राजा भवानी सिंह ने दोनों भाइयों की सुविधाओं का खर्च वहन किया था |पहलवानी के दाव-पेच उनको विरासत में मिले और गामा ने अपने भाई के साथ इमामबक्श के साथ मशहूर पंजाबी रेसलर माधोसिंह से दाव-पेच के गुर सीखने प्रारम्भ किये |  गामा पहलवान   गामा ने पत्थरों से कसरत कर बनाया था फौलादी शरीर आज के समय जिस तरह ताकत के लिए ‘र

जमशेदपुर (टाटानगर) प्लास्टिक की सड़कों के लिए है प्रसिद्ध इन पर दौड़ती हैं गाड़ियां |

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भारत के झारखंड राज्य का एक शहर है जमशेदपुर (टाटानगर) जहा पर हमारे द्वारा वेस्ट प्लास्टिक का उपयोग करके  इससे  सड़क का निर्माण किया गया है । जो बेहद ही मजबूत और तकु है | और इस सडक का निर्माण जमशेदपुर यूटिलिटी सर्विसेस कंपनी (जुस्को) ने बनवाया था । आपको निचे दी गयी इमेज में ये मालूम न हो की यह सडक वेस्ट प्लास्टिक की मदद से बनाई गयी है | यही नही इन पर रोज हजारों गाड़ियां आराम से बेधडक चलती है । जमशेदपुर (टाटानगर) खास तौर से टाटा स्टील के प्लांट की वजह से जमशेदपुर आज के समय में पूरे देशभर में प्रसिद्ध है । जमशेदपुर में अब तक ऐसी ही प्लास्टिक की  22 किमी लंबी सड़क बनाई जा चुकी है । 30 नवंबर 2011 को पहली बार साकची बागे जमशेद स्कूल से जुबिली पार्क के मुख्य द्वार तक इसी ही प्लास्टिक वेस्ट से सड़क बनाई गई थी । जो बेहद ही मजबूत है | अब बात है टाटा स्टील के बारे में तो  आपको यह जानना भी जरूरी है की 1907 में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (टिस्को) की स्थापना से इस शहर की नीव पड़ी । और इसी जगह को ढूंढने में भूवैज्ञानिकों को करीब 3 साल का लम्बा समय लगा था ।अगर इन  प्लास्टिक की सड़कों की बात की जाये तो ये एन्